जैविक खेती क्या है?

          जैविक खेती एक प्राकृतिक खेती प्रणाली है जिसमें पौधों, पशुओं और माइक्रो-ऑर्गेनिज्मों के साथ संघटित कार्य किया जाता है। इसमें कीटनाशक और संश्लेषणकर्ताओं के उपयोग की बजाय प्राकृतिक तत्वों का प्रयोग होता है। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की संतुलितता और उर्वरक संरचना को बनाए रखना है।जैविक खेती में बायोलॉजिकल उत्पादों का उपयोग होता है, जैसे कि जैविक खाद, जैविक कीटनाशक, मिट्टी में माइक्रोबायोम और संघटकों का उपयोग। इसमें कम खादन सम्पत्ति या कम प्राकृतिक तत्वों के उपयोग के चलते इसका प्रभाव प्राकृतिक तरीके से होता है और जल, मृदा और जीवाणु संगठन को बनाए रखता है।इस प्रकार की खेती में पेशेवर किसानों को ध्यान देने और जैविक उत्पादों का सटीक उपयोग करने की जरूरत होती है। यह सुरक्षित और प्राकृतिक खेती तकनीकों को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देती है और अधिकांश क्षेत्रों में जल और मृदा संरक्षण के लिए सामर्थ्य प्रदान करती है । जैविक खेती की विशेषताएं इसे स्वास्थ्यप्रद, पर्यावरण योग्य, उर्वरक-मुक्त, पेशेवर उत्पादकता, और दीर्घकालिक सततता का एक आदर्श विकल्प बनाती हैं।

जैविक खेती का परिचय

           संपूर्ण विश्व में बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है, बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र (Ecology System -प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान के चक्र) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है।
                  प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र (पारिस्थितिकी तंत्र) निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था। परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे।
vegetables on the soil
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ऑर्गेनिक या जैविक खेती कैसे करे (How To Do Organic Farming)

              जैविक खेती एक स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण को बनाए रखने का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह एक प्रकार की खेती है जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है, जैसे फसल रोटेशन, कंपोस्टिंग, और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने और कीटों को नियंत्रित करने के लिए लाभकारी कीड़ों का उपयोग। जैविक खेती में सिंथेटिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग नहीं होता है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं। जैविक किसान अपने खेतों में जैव विविधता को भी प्राथमिकता देते हैं, जो लाभकारी वन्यजीवों के लिए आवास प्रदान करते हुए फसलों की उपज बढ़ाने में मदद करता है। प्राकृतिक प्रक्रियाओं का लाभ उठाकर और सिंथेटिक रसायनों से बचकर, जैविक किसान पर्यावरण से समझौता किए बिना0 स्वस्थ भोजन का उत्पादन करने में सक्षम होते हैं।

जैविक खेती रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, या अन्य कृत्रिम पदार्थों के उपयोग के बिना फसलों को उगाने और पशुओं को पालने की एक विधि है। आज की दुनिया में, जैविक खेती अधिक लोकप्रिय हो रही है क्योंकि लोग पारंपरिक खेती के तरीकों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जागरूक हो रहे हैं। जैविक खेती पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि यह जल प्रदूषण और मिट्टी के कटाव को कम करती है।
उगाई जा रही फसल के प्रकार के आधार पर जैविक खेती कई अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है। इसमें मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए खाद और खाद जैसे प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करना शामिल है। फसल चक्र का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने और कीटों को फसल के खेत पर कब्जा करने से रोकने के लिए भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त, जैविक किसान अक्सर प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियों का उपयोग करते हैं जैसे कि लाभकारी कीड़ों को अपने खेतों में लाना या कीटों को अपनी फसलों से दूर रखने के लिए जाल या बाधाओं का उपयोग करना।

 जैविक खेती के लाभ :-जैविक खेती को लागू करने के कई लाभ हैं। यहां कुछ मुख्य लाभों को बिंदुवार दिया गया है:

   पृथ्वी संरक्षण: जैविक खेती प्रदूषण को कम करती है और मृदा, जल, और जैविक संपदाओं की संरक्षा करने में मदद करती है। यह कीटनाशकों, हार्मोन्स और संश्लेषणकर्ताओं के उपयोग को कम करके पर्यावरण को बचाती है।

   उत्पाद की गुणवत्ता: जैविक खेती में उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होती है। जैविक उत्पादों की खेती में उच्च पोषक तत्वों की मात्रा और प्राकृतिक स्वाद और खुशबू बनी रहती है।

   स्वास्थ्य के लाभ: जैविक खेती में उत्पादित फल, सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ स्वस्थ होते हैं, क्योंकि उनमें कीटनाशकों, हार्मोन्स और अन्य केमिकल तत्वों की कम मात्रा होती है। इससे खाद्य पदार्थों में पोषण का स्तर ऊँचा होता है और वाणिज्यिक उत्पादों की तुलना में ये अधिक स्वस्थ होते हैं।

   जल संरक्षण: जैविक खेती में जल का उपयोग सतत और संयंत्रित ढंग से होता है। यह मृदा में जल का बचत करता है और उचित पानी व्यवस्था के लिए मदद करता है। इससे जल संकट के खतरे को कम किया जा सकता है।

   आर्थिक लाभ: जैविक खेती छोटे और स्वामित्व आधारित किसानों को स्थायी और अच्छी आय स्रोत प्रदान करती है। इसके लिए कम खर्च, सस्ती बीज, स्थानिक प्रदर्शन का उपयोग, और सीधा बाजार उपयोग होता है।

जैविक खाद बनाने की विधियाँ :- जैविक खेती में उपयोग होने वाली जैविक खाद को तैयार करने के लिए कई विभिन्न विधियां होती हैं। यहां कुछ मुख्य विधियां हैं:

वर्मीकम्पोस्टिंग (भूसंचार): यह एक प्रक्रिया है जिसमें कीटों के सहायता से जैविक खाद तैयार की जाती है। इसमें कीटकों को सागरमाखी (earthworms) के रूप में प्रमुखतः उपयोग किया जाता है। कीटाणु युक्त बायोडीग्रेडेबल सामग्री, जैसे कि खाद, गोबर, पत्तियाँ, कचरा और सब्जी के छिलकों को एकत्रित किया जाता है। कीटाणु इस सामग्री को खाने के लिए खोदते हैं और उसके बाद उनके गुटवाले का प्रयोग करके उनके उपदानों को जैविक खाद में परिवर्तित करते हैं।

खेती संचालन (आर्गेनिक फार्मिंग): इसमें जैविक सामग्री को खेती के दौरान खेत में सीधे अपनाया जाता है। इसके लिए जैविक सामग्री, जैसे कि गोबर, खाद, कचरा, पत्तियाँ, पेड़ की छाल, सब्जी के छिलके, और पानी को सीधे खेत में डाला जाता है। यह सामग्री मृदा में घोड़ागाड़ी की मदद से मिश्रित की जाती है और खेत के भीतर खोदी जाती है ताकि वहाँ जैविक खाद बने। यह तरीका अत्यंत प्राकृतिक और सरल है।

जीवामृत (वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग): जीवामृत एक प्रकार का जैविक खाद है जो जैविक सामग्री के बायोलॉजिकल विघटन के माध्यम से तैयार किया जाता है। इसके लिए वर्मीकम्पोस्ट (भूसंचार) से प्राप्त गुटवाले को पानी में भिगो दिया जाता है और फिर उसे एक संक्रमणकारी संचालन में डालकर यातायात कराया जाता है। इसमें जीवाणु, फंगस और बैक्टीरिया समेत अन्य 88 का उपयोग होता है जो सामग्री को बटाने और उसे जैविक खाद में बदलने में मदद करते हैं।

खेती आधारित शौचालय सामग्री (गोबर खाद): गोबर खाद को भी जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। गोबर में हाइड्रोकार्बन, मेथेन, नाइट्रोजन, पोटासियम, फॉस्फेट, और मिश्रित माइक्रोएलिमेंट्स होते हैं जो मृदा के लिए उपयोगी होते हैं। गोबर खाद खेती के लिए एक प्रमुख जैविक खाद स्रोत होता है और उसे पौधों के लिए पोषण प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है।

इन विभिन्न विधियों का उपयोग करके जैविक खाद तैयार की जाती है जो मृदा में पोषण प्रदान करती है और पौधों की वृद्धि और उत्पादकता को बढ़ाती है। इन तरीकों का प्रयोग करके जैविक खेती विकासशील और सतत प्रकृतिक खेती प्रणाली को समर्थन करती है।






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